वायनाड । रात में 8 बजे से तेज बारिश शुरू हुई थी। यहां अक्सर बारिश होती है, लेकिन उस दिन लगा जैसे बादल फट रहा है। परिवार घर में ही था। हम खाना खाकर सो गए। रात करीब 2 बजे तेज आवाज से नींद खुली। घर हिल रहा था। मुझे लगा भूकंप आया है।मैं दरवाजे की तरफ भागा, बाहर देखा कि घर के बगल से नदी बह रही है। पड़ोसियों के घर टूट गए हैं। पूरा गांव बर्बाद हो गया। अब उस वीराने में वापस जाकर क्या करूंगा। जिस जगह से गुजरूंगा, अपने लोगों की याद आएगी।’
मोहन दास वायनाड के मुंडक्कई गांव में रहते थे। 30 जुलाई, 2024 की रात हुई लैंडस्लाइड से सबसे ज्यादा तबाही इसी गांव में हुई है। यहां बहने वाली चेलियार नदी का पानी मुंडक्कई के अलावा चूरलमाला, अट्टामाला और नूलपुझा में सब बहा ले गया। 341 लोगों की मौत हो गई और 206 लापता हैं। घर तबाह होने से 9 हजार से ज्यादा लोग रिलीफ कैंप में रह रहे हैं।
वायनाड में जो हुआ, वो तय था। पर्यावरणविद् माधव गाडगिल ने इसकी चेतावनी 5 साल पहले ही दे दी थी। 2019 में उन्होंने कहा था, ‘वेस्टर्न घाट को बुरी तरह नुकसान पहुंचा है। अगर इसे बचाने के लिए कोई एक्शन नहीं लिया गया, तो केरल में अगले 4 से 5 साल के अंदर बहुत बड़ी आपदा आ सकती है। अगर इस इलाके में भूस्खलन हुआ, तो ये नक्शे से मिट सकता है।’
ठीक 5 साल बाद 30 जुलाई, 2024 को माधव गाडगिल की बात सही साबित हो गई। ऐसा नहीं है कि उन्होंने पहली बार इस तरह के खतरे के बारे में चेताया था।13 साल पहले उनकी अध्यक्षता में बने पैनल ने केंद्र सरकार को एक रिपोर्ट सौंपी थी, जिसमें कहा गया था कि वेस्टर्न घाट का इलाका ईको सेंसिटिव जोन है। यहां कंस्ट्रक्शन और माइनिंग जैसी पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाली एक्टिविटी तुरंत रोक देनी चाहिए।
इसके बाद भी सब चलता रहा। जंगल काटकर चाय बागान बनाए गए, माइनिंग होती रही, वायनाड टूरिस्ट स्पॉट बना तो नए होटल और रिजॉर्ट भी बने। बीते 10 साल में वायनाड आने वाले टूरिस्ट तीन गुना से ज्यादा बढ़े हैं। राहुल गांधी ने वायनाड से चुनाव लड़ा, तब इसे टूरिस्ट हब बनाने का वादा किया था। राहुल के सांसद बनने के बाद वायनाड में टूरिस्ट की संख्या 70% बढ़ गई।
शुरुआत 2010 से
केंद्र में UPA की सरकार थी। कांग्रेस के सीनियर लीडर जयराम रमेश पर्यावरण मंत्री थे। फरवरी, 2010 में उन्होंने तमिलनाडु के कोटागिरी में मीटिंग बुलाई। इसमें गुजरात से केरल तक 1500 किमी लंबे वेस्टर्न घाट को हो रहे नुकसान पर चर्चा की गई।
वेस्टर्न घाट को बचाने के लिए जयराम रमेश ने वेस्टर्न घाट इकोलॉजी एक्सपर्ट पैनल बनाया। पैनल का अध्यक्ष पुणे के इकोलॉजिस्ट माधव गाडगिल को बनाया। 2011 में पैनल ने एक रिपोर्ट सरकार को सौंपी।पैनल को असिस्ट करने वाले एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन के प्रो. एन. अनिल कुमार बताते हैं, ‘पैनल वेस्टर्न घाट की इकोलॉजी और बायोडायवर्सिटी का आकलन करने और गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल और तमिलनाडु तक फैली पूरी माउंटेन रेंज को संरक्षित करने के उपाय बताना था।मार्च, 2010 से अगस्त, 2011 के बीच पैनल ने काम किया और 17 महीने बाद वेस्टर्न घाट पर रिपोर्ट तैयार की।
डॉ. अनिल आगे बताते हैं, ‘रिपोर्ट में इस पूरे वेस्टर्न घाट को इकोलॉजिकल सेंसिटिव जोन घोषित किया गया। इसमें आने वाले इलाकों को उनकी मौजूदा स्थिति और खतरे की प्रकृति के आधार पर तीन कैटेगरी में बांटा गया।’अनिल कुमार आगे कहते हैं कि इकोलॉजिकल सेंसिटिव जोन का 75% हिस्सा I और II कैटेगरी में आता है। इसमें वाइल्ड लाइफ सेंक्चुरी और नेचुरल पार्क आते हैं। यह पहले से प्रोटेक्टेड एरिया हैं। पैनल ने साउथ सेंट्रल वेस्टर्न घाट में आने वाले वायनाड को I और II कैटेगरी में बांटा था।इनमें वायथिरी, मनंतावाडी और सुल्थांस बाथरी तहसील कैटेगरी I में रखी गई। गाडगिल पैनल ने वायनाड के कुल 18 इकोलॉजिकली सेंसिटिव एरियाज की पहचान की थी। इसमें मेप्पाडी भी था। 30 जुलाई को इसी इलाके में लैंडस्लाइड हुई है।
अपनी रिपोर्ट में गाडगिल पैनल ने 25 सिफारिशें की थीं, इनमें सबसे अहम 5 सिफारिशें..
- 5 साल में ईको सेंसिटिव एरिया में माइनिंग पूरी तरह बंद की जाए।
- 8 साल में हर तरह के केमिकल पेस्टिसाइड का इस्तेमाल बंद किया जाए।
- 3 साल में प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल बंद किया जाए।
- इन इलाकों में डैम, नई रेल लाइन और हाईवे न बनाए जाएं।
- हिल स्टेशनों या स्पेशल इकोनॉमिक जोन में कोई नया कंस्ट्रक्शन न हो।
रिपोर्ट के आते ही केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु इसके विरोध में आ गए। वेस्टर्न घाट का सबसे ज्यादा 20,668 वर्ग किमी हिस्सा कर्नाटक में ही आता है। कर्नाटक सरकार ने दलील दी कि पैनल की सिफारिशें मानी गईं तो लोगों की आमदनी पर बुरा असर पड़ेगा।डॉ. अनिल कुमार कहते हैं, ‘पैनल की सिफारिशें पॉलिटिकल और कॉमर्शियल दोनों की वजहों से लागू नहीं हो पाईं।
पहली वजह: पेड़ों की कटाई से कमजोर हुए पहाड़ दरके
वायनाड की लाल मिट्टी चाय और कॉफी की पैदावार के लिए अच्छी मानी जाती है। यहां का कोलुक्कुमलाई दुनिया के सबसे ऊंचे चाय बागानों में से एक है, जो 8 हजार फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर है।1980 के दशक में यहां टी प्लांटेशन के लिए जमीनें तैयार की गईं। इसके लिए बड़े पैमाने पर जंगल काटे गए। इससे धीरे-धीरे मिट्टी की स्थिति बदल गई। मिट्टी के अंदर पेड़ों की जड़ें सड़ने से बड़ी-बड़ी दरारें बन गई हैं। मिट्टी के नीचे दरारों वाली स्थिति मुंडक्कई और चूरलमाला में भी है। लैंड स्लाइड से बर्बाद हुए चादर गए पानी ने मिट्टी की पकड़ को कमजोर कर दिया हो।
दूसरी वजह: टूरिज्म के साथ बेतरतीब और बेतहाशा बढ़ा कंस्ट्रक्शन
राहुल गांधी के सांसद बनने के बाद वायनाड टूरिज्म मैप पर आ गया। राहुल ने 2019 में यहां से चुनाव लड़ा था। उन्होंने वायनाड को टूरिस्ट हब बनाने की बात कही थी। 2019 में 11.56 लाख टूरिस्ट वायनाड पहुंचे थे। 2023 में ये संख्या 17.5 लाख हो गई।टूरिस्ट बढ़े तो जगह-जगह पेड़ काटकर पहाड़ को समतल किया गया। यहां रिसॉर्ट, होटल और लॉज बनाए गए। 2014 में वायनाड में सिर्फ 413 होटल थे। 2019 में ये बढ़कर 553 और 2024 में बढ़कर 1356 हो गए।जयप्रकाश कहते हैं, ‘राहुल के आने से वायनाड में टूरिस्ट की संख्या बढ़ने लगी। लोगों की आमदनी ज्यादा हुई और उनका लालच भी बढ़ता गया। बड़े होटल खुल रहे हैं। इससे लोगों को रोजगार जरूर मिला, लेकिन इसके लिए तेजी से जंगल काटे गए, पहाड़ तोड़े गए। अब नतीजा सबके सामने है।
तीसरी वजह: माइनिंग से मिट्टी कमजोर हुई, तेज बारिश नहीं झेल पाई
वायनाड में लैंडस्लाइड के बाद केंद्र सरकार ने वेस्टर्न घाट में माइनिंग पर रोक लगा दी है। गाडगिल पैनल की रिपोर्ट में भी इसकी सिफारिश की गई थी। केरल फॉरेस्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में लैंडस्लाइड की वजह पहाड़ों पर माइनिंग को बताया गया था।चूरलमाला से 4.6 किमी और मुंडक्कई से करीब 6 किमी दूर क्वारी में माइनिंग की जा रही थी, जहां खदानों में ब्लास्ट से कंपन होता है। इस एरिया की जमीन बहुत नाजुक है और तेज बारिश नहीं झेल पाई।भारत की स्पेस एजेंसी इसरो से जुड़े नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर ने लैंडस्लाइड वाली जगह की सेटेलाइट इमेज जारी की हैं। इससे लैंडस्लाइड की वजह से हुए नुकसान का पता चलता है।हादसे से पहले और बाद में ली गई इन फोटो में दिख रहा है कि पहाड़ का लगभग 86 हजार वर्ग मीटर हिस्सा खिसका और इरुवंजिपुझा नदी में गिरा। ये मलबा पानी के साथ 8 किमी तक बहता गया। इसने रास्ते में आने वाले गांव और बस्तियों को तबाह कर दिया।
जयप्रकाश बताते हैं, ‘बड़े पैमाने पर खुदाई कर मिट्टी से पत्थर को अलग किया गया। पेड़ काटकर उनकी जगह कॉफी और चाय के पौधे लगाए गए। इससे पहाड़ कमजोर हुए। मुंडक्कई और चूरलमाला में भी इसी तरह की मिट्टी पाई जाती है। डिजास्टर मैनेजमेंट डिपार्टमेंट के मुताबिक, वायनाड में लगभग 102 वर्ग किमी एरिया एक्स्ट्रीम लैंडस्लाइड और 196 वर्ग किमी एरिया मॉडरेट लैंडस्लाइड वाला है।
चौथी वजह: टनल बनाने के लिए ब्लास्ट, इससे पहाड़ कमजोर हुए
कोझिकोड से वायनाड तक बन रहा रोड प्रोजेक्ट वेस्टर्न घाट की पहाड़ियों से गुजरेगा। इसमें बनने वाली टनल भारत की तीसरी सबसे लंबी सुरंग होगी। इस टनल की लंबाई 8.17 किमी होगी। प्रोजेक्ट की लागत करीब 2400 करोड़ रुपए है।ये सड़क लैंडस्लाइड वाले मेप्पाडी से भी गुजरेगी। इसके बन जाने से अनक्कमपोइल और मेप्पाडी के बीच की दूरी 42 किमी से घटकर 20 किमी से भी कम रह जाएगी। साथ ही वायनाड से कालीकट पहुंचने में एक घंटा कम लगेगा।केरल की पूर्व प्रधान मुख्य वन संरक्षक प्रकृति श्रीवास्तव बताती हैं कि वायनाड में हुई त्रासदी के पीछे बढ़ता कंस्ट्रक्शन और सड़कों का फैलता जाल भी एक कारण है।
पांचवी वजह: लगातार 48 घंटे भारी बारिश
मुंडक्कई से लगभग 5 किमी दूर कल्लडी से रिपोर्ट किए गए रेन गेज डेटा के मुताबिक, पिछले 30 दिन में इस एरिया में औसतन 1830 मिमी बारिश हुई है। हालांकि, लैंडस्लाइड वाले एरिया में पहले 24 घंटों में 200 मिमी बारिश और अगले 24 घंटों में 372 मिमी बारिश हुई, यानी सिर्फ 48 घंटे में 572 मिमी पानी बरसा। इससे नदी में बाढ़ आई। जयप्रकाश कहते हैं, इसकी भी जांच होनी चाहिए कि यहां बादल तो नहीं फटा था।
सरकार ने कहा- बारिश की चेतावनी दी थी, लोग बोले- झूठ है
केरल सरकार के मुताबिक, लैंडस्लाइड से पहले शाम को मुंडक्कई और चूरलमाला के लिए फ्लड वार्निंग जारी की गई थी। हालांकि इस त्रासदी में जिंदा बचे मुंडक्कई के मोहन दास इसे गलत बताते हैं। वे कहते हैं कि अगर हमें बताया गया होता, तो क्या हम मरने के लिए वहां रहते। प्रशासन सही काम करता तो आज हम बेघर नहीं होते।
मुंडक्कई की ही रहने वाली नसीमा बताती हैं, ‘रात को जिस तरह बारिश हो रही थी, हमें लग रहा था कि नदी में बाढ़ आ जाएगी। ये नहीं लगा था कि पानी हमारे घरों तक पहुंच जाएगा। हम डूबने से बच गए, लेकिन देवर का पूरा परिवार गायब है। नहीं पता कि वे जिंदा भी हैं या नहीं।
राहुल से मिले शख्स बोले– टूरिस्ट्स ने शहर बर्बाद किया
राहुल और प्रियंका गांधी गुरुवार को पीड़ितों से मिलने वायनाड पहुंचे थे। उनसे मिलने वालों में मुबारक भी शामिल थे। मुबारक कहते हैं, ‘टूरिस्ट्स ने हमारे शहर को बर्बाद कर दिया है। जगह-जगह पहाड़ काटकर रिसॉर्ट और एडवेंचर क्लब खोल दिए गए हैं। पहाड़ कटेगा तो पानी तो हमारे घर में ही आएगा।
आर्मी ने ब्रिज तैयार किया, मुंडक्कई तक मदद पहुंचाना आसान
लैंडस्लाइड से सबसे ज्यादा तबाही वाले मुंडक्कई के रास्ते में पड़ने वाला पुल बाढ़ में टूट गया था। ये पुल अंग्रेजों के राज में बना था। आर्मी ने उसी जगह पर 48 घंटे में यहां लोहे का अस्थायी ब्रिज तैयार कर लिया है। बड़ी क्रेन मुंडक्कई पहुंच चुकी हैं।